सीएम बघेल खुद सड़क पर उतरे, सरकार ने कड़े फैसले लागू किए, इसलिए छत्तीसगढ़ में हालात काबू में

 दूसरे राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में कोरोना वायरस का संक्रमण ज्यादा क्यों नहीं हुआ, यह अहम सवाल है। जबकि यहां पर कोरोना के मरीज मिले भी हैं। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर स्थिति में खड़ा नजर आ रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है भूपेश सरकार द्वारा रोकथाम के लिए हरसंभव फैसले लेने में देर न करना। इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण है सरकार ने भीड़ जमा ही नहीं होने दिया और सख्ती से इसका पालन किया।



ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में कोरोना के मरीज नहीं आए। छत्तीसगढ़ में अब तक नौ प्रकरण पाजीटिव मिले हैं, जिनमें पांच लंदन से लौटे हैं। रायपुर के अलावा बिलासपुर, भिलाई, कोरबा और राजनांदगांव में कोरोना पीड़ित पहुंचे हैं। हालांकि अभी थोड़ी जल्दबाजी भी हो सकती है लेकिन परिस्थितियों को देखें तो लगता है कि राज्य में कम्युनिटी गेदरिंग को टालने का फैसला समय रहते किया गया उसके चलते यहां पर बीमारी तीसरे स्टेज में अब तक नहीं पहुंची है। तीसरा स्टेज वह होता है जिसमें वायरस के संक्रमण का सोर्स पता नहीं होता है।


इसे ही कम्युनिटी स्प्रेड बोला जा रहा है। कोरोना की देश में जैसे ही गूंज हुई छत्तीसगढ़ सरकार ने फैसले लेने शुरू कर दिए थे। जैसे  ही 10 मार्च को होली थी, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उसके पांच दिन पहले ही ऐलान कर दिया िक वे इस बार होली मिलन समारोह आयोजित नहीं करेंगे। 13 मार्च को स्कूल कॉलेज बंद करने का फैसला लिया गया। मुख्यमंत्री निवास के जनचौपाल को रद्द कर दिया। कांग्रेस भवन में मिलिए मंत्री से कार्यक्रम रद्द कर पीसीसी दफ्तर में ताला लगा दिया गया।


प्रदेश में हालात गंभीर नहीं
इसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आगे बढ़कर संदेश देने का फैसला किया। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ मिलकर जहां पूरे स्वास्थ्य अमले का उत्साहवर्धन करते रहे। बाजार या आइसोलेशन सेंटर की व्यवस्था देखने के लिए भी वे खुद ही उतर पड़े। इसका असर प्रशासनिक अमले पर भी हुआ। आज की स्थिति में छत्तीसगढ़ में कोरोना के नौ में से 3 मरीज ठीक होकर घर जा चुके हैं। नए मरीज भी वही सामने आ रहे हैं, जो विदेश से लौटे हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो कोरोना संक्रमण के मामले में छत्तीसगढ़ अब तक दूसरे राज्यों की तरह गंभीर हालातों से नहीं जूझ रहा है।


पहला मरीज मिलते ही तेजी से फैसले
राजधानी में कोरोना का पहला मरीज 18 मार्च को मिला, और उसके बाद ही सरकार ने तेज रफ्तार से फैसले लेना शुरू किए। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आपात बैठक बुलाकर राज्य की सीमा को सील कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को देश में जनता  कर्फ्यू लगाया पर भूपेश सरकार ने उसके एक दिन पहले ही 21 मार्च को शहरों के बाजार बंद कर दिए थे। इस तरह 21 और 22 मार्च को दो दिन के लिए छत्तीसगढ़ में बाजार बंद हो गए। शहर सूने हो गए। पीएम मोदी ने लॉकडाउन का फैसला किया तो सरकार ने उस पर भी अमल करने में सख्ती के साथ जिला और पुलिस प्रशासन को झोंक दिया। जहां भी कोरोना पीड़ित की जानकारी मिली, उस एरिया को सील करके तत्काल लोगों की आवाजाही रोक दी। सेनेटाइजर और मास्क की कालाबाजारी रोकने प्रशासन को उतार दिया। इतना ही नहीं, सेनेटाइजर बनाने के लिए राज्य की दो कंपनियों को लाइसेंस भी दे दिया। बाजार का समय तय लोगों के जरूरी सामान मिलने का इंतजाम किया और बाद में सख्ती भी की। कोरोना की जांच किट में कमी हुई तो अपने संसाधनों से भी किट का इंतजाम सरकार ने किया।



इसके अलावा कोरोना संदिग्धों के संपर्क में आए लोगों को हाेम आइसोलेशन में रखने और क्वारेंटाइन करने के लिए प्रशासन को सख्ती के साथ लगा दिया। इसी का परिणाम है कि कोरोना सामुदायिक संक्रमण की ओर कदम नहीं बढ़ा पाया। 


सख्त कदमों से हुआ नियंत्रण
यह सही है कि राजधानी रायपुर समेत छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख शहरों में समय रहते उठाए गए सरकारी कदमों की वजह से हालात काफी हद तक काबू में हैं। अब तक कम्यूनिटी स्प्रेड के संकेत नहीं मिले हैं। एक-एक व्यक्ति निगरानी में है। सरकारी कोशिशों के साथ-साथ लोग भी मदद कर रहे हैं। इसलिए यहां हालात काफी हद तक काबू में हैं और सैकड़ों सैंपल अब तक नेगेटिव ही निकल रहे हैं।
डा. नितिन एम नागरकर, डायरेक्टर एम्स


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